तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास, रहस्य और मंदिर की पूरी जानकारी हिंदी में

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तिरुपति मन्दिर तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थल है. तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है. और यह देश के आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जिले में स्थित है. हर साल लाखों की संख्या में दर्शनार्थी तिरुपति मन्दिर जाते है. समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्‍वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है. कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं.

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तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है. तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं. लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था. कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था. इस मंदिर के मुख्य देवता श्री वेंकटेश्वर स्वामी है, जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं और तिरुमाला पर्वत पर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ निवास करते हैं.

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तिरुपति बालाजी मंदिर में केश दान करने की परम्परा

मान्यताओं के मुताबिक, जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, वे मंदिर में आकर वेंकटेश्वर स्वामी को अपना बाल समर्पित (दान) करते हैं. दक्षिण में होने के बावजूद इस मंदिर से पूरे देश की आस्था जुड़ी है. यह प्रथा आज से नहीं बल्कि कई शाताब्दियों से चली आ रही है, जिसे आज भी भक्त काफी श्रद्धापूर्वक मानते आ रहे है. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां न सिर्फ पुरुष अपने बाल का दान करते हैं बल्कि महिलाएं व युवतियां भी भक्ति-भाव से अपने बालों का दान करती हैं.

तिरुपति में केश (बाल) दान करने के पीछे की कहानी

पौराणिक किवदंती के अनुसार, प्राचीन समय में भगवान तिरुपति बालाजी की मूर्ति पर चीटियों ने बांबी बना ली थी, जिसके कारण वह किसी को दिखाई नहीं देती थी. ऐसे में वहां रोज एक गाय आती और अपने दूध से मूर्ति का जल-अभिषेक कर चली जाती है जब इस बात का पता गाय मालिक को चला तो उसने गाय को मार दिया, जिसके बाद मूर्ति के सिर से खून बहने लगा. इस पर एक महिला ने अपने बाल काटकर बालाजी के सिर पर रख दिया था. इसके बाद भगवान प्रकट हुए और महिला से कहा, यहां आकर जो भी मेरे लिए अपने बालों का त्याग करेगा, उसकी हर इच्छा पूरी होगी. तभी से ये केश (बाल) दान की परंपरा चली आ रही है.

तिरुपति बालाजी मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता क्या है ?

पौराणिक मान्यताओं की मानें तो भगवान विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था. यह सरोवर तिरुमाला के पहाड़ी पर स्थित है. इसीलिए तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियां शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं ‘सप्तगिर‍ि’ कहलाती हैं. श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि मंदिर में स्थित प्रभु की प्रतिमा किसी ने बनाई नहीं है बल्कि ये स्वयं ही उत्पन्न हुई है.

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तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास | History of Tirupati Balaji Temple

तिरुपति बालाजी मंदिर को ‘टेम्पल ऑफ सेवन हिल्स’ भी कहा जाता है. तिरुपति बालाजी मंदिर का निर्माण करीब तीसरी शाताब्दी के आसपास में हुआ है, जिसका समय-समय अलग-अलग वंश के शासकों द्वारा जीर्णोद्धार कराया गया है. 5वीं शाताब्दी तक यह मंदिर सनातनियों का प्रमुख धार्मिक केंद्र बन चुका था. कहा यह भी जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय ने की थी. 9वीं शताब्दी में कांचीपुरम के पल्लव शासकों ने यहां कब्जा कर लिया था. इस मंदिर के ख्याति प्राप्त करने की बात की जाए तो 15वीं शाताब्दी के बाद इस मंदिर काफी प्रसिद्धि मिली, जो आजतक बरकरार है.

तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास Wiki

माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँच‍ीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था, परंतु 15 सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही. 15 सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई. 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला. हैदराबाद के मठ का भी दान रहा है.

1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति ‘तिरुमाला-तिरुपति’ के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया था. आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया था.

तिरुपति बालाजी मंदिर का सक्षिप्त वर्णन

तिरुपति बालाजी मंदिर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन करने की होती है. 1 लाख से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं. भक्तों की लंबी कतारें देखकर सहज की इस मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान लगाया जाता है. मुख्य मंदिर के अलावा यहां अन्य मंदिर भी हैं. तिरुमला और तिरुपति का भक्तिमय वातावरण मन को श्रद्धा और आस्था से भर देता है. इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णत टीटीडी के संरक्षण में है.

तिरुपति बालाजी मंदिर दिखाइए

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तिरुपति बालाजी मंदिर के पीछे की कहानी | Story behind Tirupati Balaji Temple

कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में अपने शेषशैय्या पर विश्राम कर रहे थे, तभी वहां भृगु ऋषि आए और उनके छाती पर एक लात मारी थी. इस पर क्रोधित न होकर विष्णु जी ने भृगु ऋषि के पांव पकड़ लिए और पूछा कि ऋषिवर आपके पैरों में चोट तो नहीं लगी. लेकिन लक्ष्मी जी को ऋषि का यह व्यवहार पसंद नहीं आया और वे क्रोधित होकर बैकुंठ छोड़कर चली गई और पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रूप में जन्म लिया था.

इस पर भगवान विष्णु ने अपना रूप बदल वेंकटेश्वर के रूप में माता पद्मावती के पास पहुंच गए और विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया और फिर दोनों की शादी हो गई. आज भी तिरुपति मंदिर में स्थित मूर्ति को आधा पुरुष व आधा महिला कपड़े में सजाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान वेंकटेश्वर स्वामी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ निवास करते हैं.

तिरुपति बालाजी मंदिर में चढ़ने वाला प्रसाद

तिरुपति बालाजी मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं. तिरुपति बालाजी मंदिर से 23 किलो मीटर दूर एक गांव है, जहां बाहरी व्‍यक्तियों का जाना वर्जित है. यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं. मान्‍यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब इसी गांव से आता है. इस गांव में सदियों से परम्परा चली आ रही है, यहां की महिलाएं कभी भी सिले हुए वस्त्र धारण नहीं करती हैं.

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तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में रोचक तथ्य

  • मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करते ही दाई ओर एक छड़ी रखी है, जिसको लेकर कहा जाता है कि बालाजी की मां उसी छड़ी से उनकी पिटाई करती थी.
  • पिटाई के दौरान ही उनकी ठुड्डी पर चोट लग गई थी, जिस पर उनकी मां ने उस चंदन का लेप लगाया था, जो प्रथा के रूप में आज भी चली रही है.
  • मंदिर की मूर्ति में वेंकटेश्वर स्वामी खुद निवास करते हैं और इसीलिए मूर्ति के सिर पर लगे बाल असली है, जो कभी आपस में उलझते नहीं और मुलायम बने रहते हैं.
  • मूर्ति पर कान लगाकर सुनने पर समुद्री लहरों की ध्वनि सुनाई देती है और मूर्ति में भी हमेशा नमी बनी रहती है.मंदिर में एक दीया है, जो कई शाताब्दियों से निरंतर जलता आ रहा है. रहस्यमयी बात यह है कि इस दीपक में न तो कभी तेल डाला जाता है और न कभी घी.
  • गर्भ गृह में प्रवेश करने पर मूर्ति मध्य में स्थित दिखाई देती है लेकिन गर्भ गृह के बाहर से देखने पर मूर्ति गर्भ गृह में दाई ओर स्थित दिखाई देती है.
  • वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर पचाई कपूर लगाया जाता है. विज्ञान की मानें तो पचाई कपूर लगाने से पत्थर कुछ समय बाद चटक जाता है लेकिन वर्षों से तिरुपति बालाजी को यह कपूर लगाया जा रहा है लेकिन आज भी मूर्ति एकदम सुरक्षित है.
  • हर गुरुवार को तिरुपति जी का चंदन श्रृंगार किया जाता है और जब यह चंदन लेप हटाया जाता है तो मूर्ति के ह्रदय के पास माता लक्ष्मी छवि उभर आती है. ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी बालाजी में ही समाहित है. इसीलिए प्रतिदिन मूर्ति के श्रृंगार के समय नीचे धोती और ऊपर साड़ी पहनाई जाती है.
  • तिरुपति बालाजी की मूर्ति एक काले पत्थर से बनी है, जो देखने एक जीवंत मूर्ति दिखाई देती है. गर्भगृह का वातावरण काफी ठंडा रखा जाता है, उसे बावजूद मूर्ति पर पसीने की बूंद उभर आती हैं. मान्‍यता है कि बालाजी को अत्यधिक गर्मी लगती है, जिससे उनकी पीठ भी हमेशा नम रहती है.

तिरुपति बालाजी मंदिर में VIP दर्शन | VIP Darshan in Tirupati Temple

अगर आप तिरुपति बालाजी मंदिर में VIP दर्शन करने की सोच रहे हैं तो इसके लिए आपको सबसे पहले मंदिर की वेबसाइट https://www.tirumala.org पर जाना होगा और सामान्य जानकारी देकर लॉगइन करना होगा, जिसके स्पेशल इंट्री में जाकर जिस दिन दर्शन करना हो, वहां से उस तिथि का चयन कर लें. इसके लिए आपको 300 रुपये प्रति व्यक्ति देने होंगे और अगर साथ में प्रसाद के रूप में लड्डू लेने की सोच रहे हैं तो प्रति लड्डू के पीछे आपको 50 रुपये अलग से देने होंगे.

तिरुपति बालाजी मंदिर की फोटो

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तिरुपति बालाजी मंदिर के रहस्य | tirupati balaji mandir rahasya

  • मुख्यद्वार के दाएं बालरूप में बालाजी को ठोड़ी से रक्त आया था, उसी समय से बालाजी के ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा शुरू हुई.
  • भगवान बालाजी के सिर पर रेशमी केश हैं, और उनमें गुत्थिया नहीं आती और वह हमेशा ताजा रहेते है.
  • मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है, उस गांव में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषेध है. वहां पर लोग नियम से रहते हैं. वहीं से लाए गए फूल भगवान को चढ़ाए जाते हैं और वहीं की ही अन्य वस्तुओं को चढाया जाता है जैसे- दूध, घी, माखन आदि.
  • भगवान बालाजी गर्भगृह के मध्य भाग में खड़े दिखते हैं लेकिन, वे दाई तरफ के कोने में खड़े हैं बाहर से देखने पर ऎसा लगता है.
  • बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और उपर साड़ी से सजाया जाता है.
  • गृभगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता, बालाजी के पीछे एक जलकुंड है उन्हें वहीं पीछे देखे बिना उनका विसर्जन किया जाता है.
  • बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करो, वहां गीलापन रहता ही है, वहां पर कान लगाने पर समुद्र घोष सुनाई देता है.
  • बालाजी के वक्षस्थल पर लक्ष्मीजी निवास करती हैं.हर गुरुवार को निजरूप दर्शन के समय भगवान बालाजी की चंदन से सजावट की जाती है उस चंदन को निकालने पर लक्ष्मीजी की छबि उस पर उतर आती है.
  • बालाजी के जलकुंड में विसर्जित वस्तुए तिरूपति से 20 किलोमीटर दूर वेरपेडु में बाहर आती हैं.
  • गर्भगृह मे जलने वाले दिपक कभी बुझते नही हैं, वे कितने ही हजार सालों से जल रहे हैं किसी को पता भी नही है.

तिरुपति बालाजी की चढ़ाई कितनी है?

तिरुपति बालाजी जी मंदिर में जाने के लिए 3500 सीढ़ियां कर जाना पड़ता है. पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है. इसके द्वारा प्रभु तक पहुँचने की चाह की पूर्ति होती है. साथ ही अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है.

तिरुपति बालाजी मंदिर लड्डू | tirupati balaji temple laddu online

पनयारम यानी लड्डू मंदिर के बाहर बेचे जाते हैं, जो यहाँ पर प्रभु के प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं. इन्हें खरीदने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है. श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं.

तिरुपति बालाजी मंदिर रहने की व्यवस्था

तिरुमाला में मंदिर के आसपास रहने की काफी अच्छी व्यवस्था है. विभिन्न श्रेणियों के होटल व धर्मशाला यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं. इनकी पहले से बुकिंग टीटीडी के केंद्रीय कार्यालय से कराई जा सकती है. यह केन्द्रीय कार्यालय सुबह 6 बजे खुलता है. कमरे की बुकिंग के लिए लंबी लाइनें लगती हैं. सामान्यतः पूर्व बुकिंग के लिए अग्रिम धनराशि के साथ एक पत्र व 100 रुपए का एक ड्राफ्ट यहाँ पर भेजना पड़ता है. टीटीडी के स्वामित्व वाले भवनों में रहने की व्यवस्था केवल 24 घंटे के लिए दी जाती है.

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तिरुपति बालाजी मंदिर कैसे पहुंचें ?

तिरुपति बालाजी मंदिर निकटतम हवाई अड्डा

यहां से निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति है. इंडियन एयरलाइंस की हैदराबाद, दिल्ली और तिरुपति के बीच प्रतिदिन सीधी उडा़न उपलब्‍ध है. तिरुपति पर एक छोटा-सा हवाई अड्डा भी है, जहाँ पर मंगलवार और शनिवार को हैदराबाद से फ्लाइट मिल सकती है. इसके बाद एपीएसआरटीसी की बस सेवा भी उपलब्ध है जो परिसर तक पहुँचाने में केवल 30 मिनट का समय लेती है.

तिरुपति बालाजी मंदिर निकटतम रेलवे स्टेशन

यहां से सबसे पास का रेलवे स्टेशन तिरुपति है. यहां से बैंगलोर, चेन्नई और हैदराबाद के लिए हर समय ट्रेन उपलब्‍ध है. तिरुपति से रेनिगुंटा जंक्शन जो कि तिरुपति से केवल 10 किलोमीटर दूर है और गुटूंर तक भी ट्रेन चलती है. रेनिगुंटा जंक्शन से ट्रेन के विकल्प ज्यादा मौजूद हैं.

सड़क से तिरुपति बालाजी मंदिर कैसे पहुंचेंगे

राज्य के विभिन्न भागों से तिरुपति और तिरुमला के लिए एपीएसआरटीसी की बसें नियमित रूप से चलती हैं. टीटीडी भी तिरुपति और तिरुमला के बीच थोड़ी-बहुत नि:शुल्क बस सेवा उपलब्ध कराती है. यहां के लिए टैक्सी भी मिलती है. जिससे आप सडक मार्ग के द्वारा तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंच सकते है.

तिरुपति बालाजी मंदिर जाने का सही समय

मौसम के हिसाब से यहां आने का उपयुक्त समय सितंबर से फरवरी के बीच है. तिरुपति में आमतौर पर वर्षभर गर्मी होती है. तिरुमला की पहाड़ियों में वातावरण ठंडा होता है. गर्मियों में अधिकतम 43 डि. और न्यूनतम 22 डि., सर्दियों में अधिकतम 32 डि. और न्यूनतम 14 डि. तापमान रहता है. यहां के लोग मुख्यत तेलुगु बोलते हैं. लेकिन तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी समझने वाले लोगों की भी बड़ी संख्या हैं. हिंदी भाषा बोलने वाले और हिंदी में किये प्रश्न का जवाब हिंदी में देने वाले कम हैं तिरुपति शहर में.

तिरुपति बालाजी मंदिर के लिए प्रसाद | tirupati balaji mandir prsad

तिरुपति पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है. इसके अलावा आप ऑनलाइन तिरुपति बालाजी मंदिर की वेबसाइट से प्रसाद की बूकिंग करवा सकते है.

तिरुपति बालाजी मंदिर जाने पर क्या क्या खरीदारी करें

तिरुपति में चंदन की लकड़ी से बनाई गई भगवान वेंकटेश्वर और पद्मावती की मूर्तियां प्रसिद्ध हैं. यहां पर वैसे कलाकार भी है जिससे आप चावल के दानों पर अपना नाम लिखवा सकते है. यह वास्तव में एक अनोखी चीज है जिसे यादगार के तौर पर अपने पास रखा जा सकता है. आंध्र प्रदेश सरकार के लिपाक्षी इंपोरियम में पारंपरिक हस्तशिल्प और वस्त्रों की बुनाई के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं. मंदिर में भगवान वैंकटेश्वर की तस्वीर वाले सोने से सिक्के भी बेचे जाते हैं.

तिरुपति बालाजी का मंदिर कहां है? | tirupati balaji mandir kahan hai

तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थल है. तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है. यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है. प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं. समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्‍वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है. कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं.

तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है. तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं. लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था. कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था.

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तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में | tirupati balaji mandir Ke Bare Me

इस मंदिर के विषय में एक अनुश्रुति इस प्रकार से है. प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु अवतार ही है. ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था. यह सरोवर तिरुमाला के पास स्थित है. तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं ‘सप्तगिर‍ि’ कहलाती हैं. श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है.

वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ कर गये थे. प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया. ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई.

तिरुपति बालाजी मंदिर में मुख्य मंदिर

श्री वेंकटेश्वर का यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है. इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है. यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं. पुराण व अल्वर के लेख जैसे प्राचीन साहित्य स्रोतों के अनुसार कल‍ियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है.

50000 से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं. इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है. श्री वैंकटेश्वर का यह प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है. यह श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है. माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्‍हें वैंकटेश्‍वर कहा जाने लगा.

इन्‍हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर साक्षत विराजमान है. यह मुख्य मंदिर के प्रांगण में है। मंदिर परिसर में अति सुंदरता से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं. मंदिर परिसर में मुख्श् दर्शनीय स्थल हैं:पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि. कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है.

यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है. इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है. माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्‍वर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है. हालांकि दर्शन करने वाले भक्‍तों के लिए यहां विभिन्‍न जगहों तथा बैंकों से एक विशेष पर्ची कटती है. इसी पर्ची के माध्‍यम से आप यहां भगवान वैंकटेश्‍वर के दर्शन कर सकते है. देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में तिरुपति बालाजी मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है. देश-विदेश के कई बड़े उद्योगपति, फिल्म सितारे और राजनेता यहां अपनी उपस्थिति देते हैं.

श्री पद्मावती समोवर मंदिर | Shri Padmavati Samovar Temple

तिरुचनूर (इसे अलमेलुमंगपुरम भी कहते हैं) तिरुपति से पांच किमी. दूर है. यह मंदिर भगवान श्री वेंकटेश्वर विष्णु की पत्नी श्री पद्मावती लक्ष्मी जी को समर्पित है. कहा जाता है कि तिरुमला की यात्रा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक इस मंदिर के दर्शन नहीं किए जाते. तिरुमला में सुबह 10.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक कल्याणोत्सव मनाया जाता है. यहां दर्शन सुबह 6.30 बजे से शुरु हो जाता हैं. शुक्रवार को दर्शन सुबह 8बजे के बाद शुरु होता हैं. तिरुपति से तिरुचनूर के बीच दिनभर बसें चलती हैं.

श्री गोविंदराजस्वामी मंदिर | sri govindaraja swamy temple tirupati timings

श्री गोविंदराजस्वामी भगवान बालाजी के बड़े भाई हैं. यह मंदिर तिरुपति का मुख्‍य आकर्षण है. इसका गोपुरम बहुत ही भव्य है जो दूर से ही दिखाई देता है. इस मंदिर का निर्माण संत रामानुजाचार्य ने 1130 ईसवी में की थी. गोविंदराजस्वामी मंदिर में होने वाले उत्सव और कार्यक्रम वैंकटेश्वर मंदिर के समान ही होते हैं. वार्षिक बह्मोत्‍सव वैसाख मास में मनाया जाता है.

इस मंदिर के प्रांगण में संग्रहालय और छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें भी पार्थसारथी, गोड़ादेवी आंदल और पुंडरिकावल्ली का मंदिर शामिल है. मंदिर की मुख्य प्रतिमा शयनमूर्ति (भगवान की निंद्रालीन अवस्था) है. दर्शन का समय प्रात: 9.30 से दोपहर 12.30, दोपहर 1.00 बजे से शाम 6 बजे तक और शाम 7.00 से रात 8.45 बजे तक होता है.

श्री कोदंडरामस्वमी मंदिर | sri kodandarama swamy temple tirupati timings

यह मंदिर तिरुपति के मध्य में स्थित है. यहां सीता, राम और लक्ष्मण की पूजा होती है. इस मंदिर का निर्माण चोल राजा ने दसवीं शताब्दी में कराया था. इस मंदिर के ठीक सामने अंजनेयस्वामी का मंदिर है जो श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर का ही उपमंदिर है. उगडी और श्री रामनवमी का पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.

श्री कपिलेश्वरस्वामी मंदिर | sri kapileswara swamy temple timings

कपिला थीर्थम भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर और थीर्थम है. मा यह मूर्ति कपिला मुनि द्वारा स्थापित की गई था और इसलिए यहां भगवान शिव को कपिलेश्वर के रूप में जाना जाता है. यह तिरुपति का एकमात्र शिव मंदिर है. यह तिरुपति शहर से तीन किमी. दूर उत्तर में, तिरुमला की पहाड़ियों के नीचे ओर तिरुमाला जाने के मार्ग के बीच में स्थित है कपिल तीर्थम जाने के लिए बस, ऑटो रिक्शा यातायात का मुख्य साधन हैं ओर सरलता से उपलब्ध भी है.

यहां पर कपिला तीर्थम नामक पवित्र नदी भी है. जो सप्तगिरी पहाड़ियों में से बहती पहाड़ियों से नीचे कपिल तिर्थम मे आती हैं जो अति मनोरम्य लगता हैं. इसे अलिपिरि तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर श्री वेनुगोपाल ओर लक्ष्मी नारायण के साथ गौ माता कामधेनु कपिला गाय का य हनुमानजी का अनुपम मंदिर भी स्थित हैं. यहां महाबह्मोत्‍सव, महा शिवरात्रि, स्खंड षष्टी और अन्नभिषेकम बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं. वर्षा ऋतु में झरने के आसपास का वातावरण बहुत ही मनोरम होता है.

श्री कल्याण वेंकटेश्वरस्वामी मंदिर | Sri Kalyana Venkateswaraswamy Temple

यह मंदिर तिरुपति से 12 किमी.पश्चिम में श्रीनिवास मंगापुरम में स्थित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री पद्मावती से शादी के बाद तिरुमला जाने से पहले भगवान वेंकटेश्वर यहां ठहरे थे. यहां स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की पत्थर की विशाल प्रतिमा को रेशमी वस्त्रों, आभूषणों और फूलों से सजाया गया है. वार्षिक ब्रह्मोत्‍सव और साक्षात्कार वैभवम यहां धूमधाम से मनाया जाता है.

श्री कल्याण वेंकटेश्वरस्वामी मंदिर | sri kalyana venkateswara swamy temple timings

यह मंदिर तिरुपति से 40 किमी दूर, नारायणवनम में स्थित है. भगवान श्री वेंकटेश्वर और राजा आकाश की पुत्री देवी पद्मावती यही परिणय सूत्र में बंधे थे. यहां मुख्य रूप से श्री कल्याण वेंकटेश्वरस्वामी की पूजा होती है. यहां पांच उपमंदिर भी हैं. श्री देवी पद्मावती मंदिर, श्री आण्डाल मंदिर, भगवान रामचंद्र जी का मंदिर, श्री रंगानायकुल मंदिर और श्री सीता लक्ष्मण मंदिर.

इसके अलवा मुख्य मंदिर से जुड़े पांच अन्य मंदिर भी हैं. श्री पराशरेश्वर स्वामी मंदिर, श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर, श्री शक्ति विनायक स्वामी मंदिर, श्री अगस्थिश्वर स्वामी मंदिर और अवनक्षम्मा मंदिर. वार्षिक ब्रह्मोत्‍सव मुख्य मंदिर श्री वीरभद्रस्वामी मंदिर और अवनक्शम्मा मंदिर में मनाया जाता है.

श्री वेणुगोपालस्वामी मंदिर | sri venugopala swamy temple timings

यह मंदिर तिरुपति से 58 किमी. दूर, कारवेतीनगरम में स्थित है. यहां मुख्य रूप से भगवान वेणुगोपाल की प्रतिमा स्थापित है. उनके साथ उनकी पत्नियां श्री रुक्मणी अम्मवरु और श्री सत्सभामा अम्मवरु की भी प्रतिमा स्‍थापित हैं. यहां एक उपमंदिर भी है.

श्री वेद नारायणस्वामी मंदिर | Sri Veda Narayanaswamy Temple

नगलपुरम का यह मंदिर तिरुपति से 70 किमी दूर है. माना जाता है कि भगवान विष्णु ने मत्‍स्‍य अवतार लेकर सोमकुडु नामक राक्षस का यहीं पर संहार किया था. मुख्य गर्भगृह में विष्णु की मत्स्य रूप में प्रतिमा स्‍थापित है जिनके दोनों ओर श्रीदेवी और भूदेवी विराजमान हैं. भगवान द्वारा धारण किया हुआ सुदर्शन चक्र सबसे अधिक आकर्षक लगता है. इस मंदिर का निर्माण विजयनगर के राजा श्री कृष्णदेव राय ने करवाया था.

यह मंदिर विजयनगर की वास्तुकला के दर्शन कराता है. मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव ब्रह्मोत्सव और सूर्य पूजा है. यह पूजा फाल्‍गुन मास की 12वीं, 13वीं और 14वीं तिथि को होती है. इस दौरान सूर्य की किरण प्रात: 6बजे से 6.15 मिनट तक मुख्य प्रतिमा पर पड़ती हैं. ऐसा लगता है मानो सूर्य देव स्वयं भगवान की पूजा कर रहे हों.

श्री प्रसन्ना वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर | sri prasanna venkateswara swamy temple

माना जाता है कि श्री पद्मावती अम्मवरु से विवाह के पश्चात् श्री वैंक्टेश्वरस्वामी अम्मवरु ने यहीं, अप्पलायगुंटा पर श्री सिद्धेश्वर और अन्य शिष्‍यों को आशीर्वाद दिया था. अंजनेयस्वामी को समर्पित इस मंदिर का निर्माण करवेतीनगर के राजाओं ने करवाया था. कहा जाता है कि आनुवांशिक रोगों से ग्रस्त रोगी अगर यहां आकर वायुदेव की प्रतिमा के आगे प्रार्थना करें तो भगवान जरुर सुनते हैं. यहां देवी पद्मावती और श्री अंदल की मूर्तियां भी हैं. साल में एक बार ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है.

श्री चेन्नाकेशवस्वामी मंदिर | sri chennakesava swamy temple tallapaka

तल्लपका तिरुपति से 100 किमी. दूर है. यह श्री अन्नामचार्य (संकीर्तन आचार्य) का जन्मस्थान है. अन्नामचार्य श्री नारायणसूरी और लक्कामअंबा के पुत्र थे. अनूश्रुति के अनुसार करीब 1000 वर्ष पुराने इस मंदिर का निर्माण और प्रबंधन मत्ती राजाओं द्वारा किया गया था.

श्री करिया मणिक्यस्वामी मंदिर | Sri Kariya Manikyaswamy Temple

श्री करिया मणिक्यस्वामी मंदिर (इसे श्री पेरुमला स्वामी मंदिर भी कहते हैं) तिरुपति से 51 किमी. दूर नीलगिरी में स्थित है. माना जाता है कि यहीं पर प्रभु महाविष्णु ने मकर को मार कर गजेंद्र नामक हाथी को बचाया था. इस घटना को महाभगवतम में गजेंद्रमोक्षम के नाम से पुकारा गया है.

श्री अन्नपूर्णा-काशी विश्वेश्वरस्वामी | sri annapurna-kashi vishveswaraswamy in hindi

कुशस्थली नदी के किनारे बना यह मंदिर तिरुपति से 56 किमी. की दूरी पर,बग्गा अग्रहरम में स्थित है. यहां मुख्य रूप से श्री काशी विश्वेश्वर, श्री अन्नपूर्णा अम्मवरु, श्री कामाक्षी अम्मवरु और श्री देवी भूदेवी समेत श्री प्रयाग माधव स्वामी की पूजा होती है. महाशिवरात्रि और कार्तिक सोमवार को यहां विशेष्‍ा आयोजन किया जाता है.

स्वामी पुष्करिणी | Swami Pushkarini

इस पवित्र जलकुंड के पानी का प्रयोग केवल मंदिर के कामों के लिए ही किया जा सकता है. जैसे भगवान के स्नान के लिए, मंदिर को साफ करने के लिए, मंदिर में रहने वाले परिवारों (पंडित, कर्मचारी) द्वारा आदि. कुंड का जल पूरी तरह स्वच्छ और कीटाणुरहित है. यहां इसे पुन:चक्रित किए जाने व्यवस्था की भी व्‍यवस्‍था की गई है.

माना जाता है कि वैकुंठ में विष्णु पुष्‍करिणी कुंड में ही स्‍नान करते है, इसलिए श्री गरुड़जी ने श्री वैंकटेश्वर के लिए इसे धरती पर लेकर आए थे. यह जलकुंड मंदिर से सटा हुआ है. यह भी कहा जाता है कि पुष्करिणी के दर्शन करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और भक्त को सभी सुख प्राप्त होते हैं. मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व भक्त यहां दर्शन करते हैं. ऐसा करने से शरीर व आत्मा दोनों पवित्र हो जाते हैं.

आकाशगंगा जलप्रपात

आकाशगंगा जलप्रपात तिरुमला मंदिर से तीन किमी. उत्तर में स्थित है. इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण यह है कि इसी जल से भगवान को स्‍नान कराया जाता है. पहाड़ी से निकलता पानी तेजी से नीचे धाटी में गिरता है. बारिश के दिनों में यहां का दृश्‍य बहुत की मनमोहक लगता है.

श्री वराहस्वामी मंदिर

तिरुमला के उत्तर में स्थित श्री वराहस्वामी का प्रसिद्ध मंदिर पुष्किरिणी के किनारे स्थित है. यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार वराह स्वामी को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि तिरुमला मूल रूप से आदि वराह क्षेत्र था और वराह स्वामी की अनुमति के बाद ही भगवान वैंकटेश्वर ने यहां अपना निवास स्थान बनाया. ब्रह्म पुराण के अनुसार नैवेद्यम सबसे पहले श्री वराहस्वामी को चढ़ाना चाहिए और श्री वैंकटेश्वर मंदिर जाने से पहले यहां दर्शन करने चाहिए. अत्री समहित के अनुसार वराह अवतार की तीन रूपों में पूजा की जाती है: आदि वराह, प्रलय वराह और यजना वराह. तिरुमला के श्री वराहस्वामी मंदिर में इनके आदि वराह रूप में दर्शन होते हैं।

श्री बेदी अंजनेयस्वामी मंदिर

स्वामी पुष्किरिणी के उत्तर पूर्व में स्थित यह मंदिर श्री वराहस्वामी मंदिर के ठीक सामने है. यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है. यहां स्थापित भगवान की प्रतिमा के हाथ प्रार्थना की अवस्था हैं. अभिषेक रविवार के दिन होता है और यहां हनुमान जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है.

तिरुपति में क्या मांसाहारी भोजन मिलता है ?

होटल के रेस्टोरेंट में शाकाहारी मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन मिलता है. तिरुपति रेलवे स्टेशन के पास सेल्फ सर्विस उपलब्ध कराने वाला दीपम फूड प्लाजा में बड़ी संख्या में यात्री आते हैं. यहां सफाई का खास ध्यान रखा जाता है. एपीटीडीसी द्वारा संचालित पुन्नमी रेस्टोरेंट में सस्ता, स्वादिष्ट और स्‍वच्‍छ भोजन मिलता है.

तिरुपति में ब्रह्मोत्सव

तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व ‘ब्रह्मोत्सवम’ है जिसे मूलतः प्रसन्नता का पर्व माना जाता है. नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है, जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है (सितंबर, अक्टूबर). इसके साथ ही यहाँ पर मनाए जाने वाले अन्य पर्व हैं – वसंतोत्सव, तपोत्सव, पवित्रोत्सव, अधिकामासम आदि.

तिरुपति में विवाह संस्कार

यहाँ पर एक ‘पुरोहित संघम’ है, जहाँ पर विभिन्न संस्कारों औऱ रिवाजों को संपन्न किया जाता है. इसमें से प्रमुख संस्कार विवाह संस्कार, नामकरण संस्कार, उपनयन संस्कार आदि संपन्न किए जाते हैं. यहाँ पर सभी संस्कार उत्तर व दक्षिण भारत के सभी रिवाजों के अनुसार संपन्न किए जाते हैं.

FAQ’s-tirupati balaji ka itihas In Hindi

Q: तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास क्या है ?

Ans: तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं. लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था. कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था.

Q: तिरुपति बालाजी मंदिर में किसकी मूर्ति है ?

Ans: तिरुपति बालाजी मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमला पर्वत पर स्थित है और यह भारत के मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक है. तिरुपति बालाजी का वास्तविक नाम श्री वेंकटेश्वर स्वामी है जो स्वयं भगवान विष्णु हैं.

Q: तिरुपति बालाजी की चढ़ाई कितनी है?

Ans: तिरुपति बालाजी जी मंदिर में जाने के लिए 3500 सीढ़ियां कर जाना पड़ता है. पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है.

Q: तिरुपति बालाजी VIP दर्शन कैसे करें ?

Ans: सबसे पहले मंदिर की वेबसाइट https://www.tirumala.org पर जाना होगा और सामान्य जानकारी देकर लॉगइन करना होगा, जिसके स्पेशल इंट्री में जाकर जिस दिन दर्शन करना हो, वहां से उस तिथि का चयन कर लें. इसके लिए आपको 300 रुपये प्रति व्यक्ति देने होंगे.

Q: तिरुपति बालाजी बाल देने का महत्व क्या है ?

Ans: मान्यताओं के मुताबिक, जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, वे मंदिर में आकर वेंकटेश्वर स्वामी को अपना बाल समर्पित (दान) करते हैं. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां न सिर्फ पुरुष अपने बाल का दान करते हैं बल्कि महिलाएं व युवतियां भी भक्ति-भाव से अपने बालों का दान करती हैं.

Q: तिरुपति बालाजी मंदिर कहां है ?

Ans: तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जिले में स्थित है. हर साल लाखों की संख्या में दर्शनार्थी तिरुपति मन्दिर जाते है. समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्‍वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है.

Q: तिरुपति बालाजी मंदिर किस राज्य में है ?

Ans: तिरुपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जिले में स्थित है.

Q: तिरुपति बालाजी कितने किलोमीटर है ?

Ans: आप अपने मोबाइल फोन में गूगल मैप के द्वारा अपनी लोकेशन चालू करके तिरुपति बालाजी कितने किलोमीटर है इसकी जानकारी को आसानी से प्राप्त कर सकते है.

Q: तिरुपति बालाजी कैसे पहुंचे by flight ?

Ans: निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति है. इंडियन एयरलाइंस की हैदराबाद, दिल्ली और तिरुपति के बीच प्रतिदिन सीधी उडा़न उपलब्‍ध है. तिरुपति पर एक छोटा-सा हवाई अड्डा भी है, जहाँ पर मंगलवार और शनिवार को हैदराबाद से फ्लाइट मिल सकती है. इसके बाद एपीएसआरटीसी की बस सेवा भी उपलब्ध है जो परिसर तक पहुँचाने में केवल 30 मिनट का समय लेती है.

Q: तिरुपति बालाजी कैसे पहुंचे by train ?

Ans: यहां से सबसे पास का रेलवे स्टेशन तिरुपति है. यहां से बैंगलोर, चेन्नई और हैदराबाद के लिए हर समय ट्रेन उपलब्‍ध है. तिरुपति से रेनिगुंटा जंक्शन जो कि तिरुपति से केवल 10 किलोमीटर दूर है और गुटूंर तक भी ट्रेन चलती है. रेनिगुंटा जंक्शन से ट्रेन के विकल्प ज्यादा मौजूद हैं.

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